Who We Are?
राष्ट्रीय संस्कृत मंच को 2015 में संस्कृत से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान हेतु व्हाट्सएप पर संचालित किया गया। आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन में निरत संस्कृत के विद्वानों एवं शोध से जुड़े युवा शोधार्थियों को अनिवार्य सूचनाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से इस मंच का संचालन “संस्कृत सूचना मंच” के नाम से हुआ था, परंतु किन्हीं कारणों से मई 2016 में उस समूह के भंग हो जाने पर मंच की उपयोगिता से परिचित एवं लाभान्वित विद्वतजनों के आग्रह एवं आदरणीय गुरुजनों की प्रेरणा से इस मंच का तत्क्षण ही पुनर्गठन राष्ट्रीय संस्कृत मंच के नाम से किया गया। शनै: शनै: संपूर्ण भारत-वर्ष के विद्वान इस समूह से जुड़ने लगे परंतु, सदस्य सीमा सीमित होने के कारण बहुत से विद्वानों के न जुड़ पाने की स्थिति में बाद में राष्ट्रीय संस्कृत मंच, भाग-2 का गठन व्हाट्सएप पर किया गया। वर्तमान में भारत के प्रत्येक प्रांतों एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मंच के अनेक समूह संचालित है। संस्कृत जगत् से संबंधित जानकारियों को उपलब्ध कराने वाले इस व्हाट्सएप समूह की प्रमाणिकता, महत्ता एवं उपयोगिता को देखते हुए भारत के विभिन्न प्रांतों से संस्कृत प्रेमी-जन इस मंच से जुड़ने को तत्पर हैं परन्तु व्हाट्सएप की अपनी सीमाएं हैं। इसका विचार करते हुए ऐसे प्लेटफॉर्म की आवश्यकता अनुभव होने लगी जहां पर व्यापक स्तर पर लोग इस मंच से जुड़-कर लाभान्वित हो सके तथा परस्पर सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकें। एतदर्थ राष्ट्रीय संस्कृत मंच की वेबसाइट उसी व्हाट्सएप समूह का विस्तार है। मंच के संस्थापक डॉ. राजेश कुमार मिश्र के द्वारा राष्ट्रीय संस्कृत मंच के वेबसाइट के निर्माण की सार्वजनिक घोषणा 27 मई 2019 को गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय में मंच के द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में की गई थी। अतः 17 मई 2020 के अन्तरराष्ट्रीय वेबिनार में राष्ट्रीय संस्कृति मंच के वेबसाइट का उदघाटन परमारदरणी मा. इंद्रेश जी के कर कमलों द्वारा किया गया।
राष्ट्रीय संस्कृत मंच के उद्देश्य-
- विश्व की प्राचीनतम भाषा के सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक महत्व को प्रतिपादित करना,
- समृद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा को उजागर करना है,
- संस्कृत से संबद्ध जानकारियों तथा कार्यों को साझा करना,
- संस्कृत साहित्य में निहित ज्ञान से समाज को परिचित करवाना,
- प्राचीन शिक्षा पद्धति और हमारी संस्कृति के गढ़ रहस्यों को उद्घाटित करते हुए मर्मज्ञ विद्वानों द्वारा विद्वत समाज में परिचर्चा करवाना,
- संस्कृत के प्रति लोगों में व्याप्त ग़लत धारणाओं का विभिन्न माध्यम से खंडन करते हुए उसके सैद्धांतिक वह वैज्ञानिक पक्ष को स्थापित करना,
- विभिन्न शास्त्रोक्त रहस्यों को वर्तमान समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना, जिससे हमारा राष्ट्र विश्व-गुरू की पहचान को पुनः धारण करें,
- संस्कृत भाषा से संबंधित राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सूचनाएं उपलब्ध करवाना,
- वर्तमान में संस्कृत भाषा में सन्-निहित ज्ञान राशि को वैश्विक पटल पर उप-स्थापित करना,
- संस्कृत भाषा से इतर विद्वानों यथा वैज्ञानिक, डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के संस्कृत भाषा के प्रति उनके दृष्टिकोण, विचारों, अनुभवों एवं अनुसंधान को समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना ,
- विश्व में संस्कृत भाषा से संबंधित संस्थाओं का पता लगाना एवं उनके द्वारा किए जा रहे विशिष्ट कार्यों की सूचना संस्कृतज्ञ विद्वानों को उपलब्ध कराना,
- संस्कृत साहित्य को आधार बनाकर शोधकर्ताओं द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण एवं समाज उपयोगी शोध-कार्यों को प्रकाश में लाना,
- संस्कृत की सुदीर्घ ज्ञान परंपरा में योगदान देने वाले राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विद्वानों और संस्कृत प्रेमियों को एक मंच उपलब्ध कराना जहां वे अपने ज्ञान एवं अनुभवों व अनुसंधान कार्यों का परस्पर आदान प्रदान कर सकें,
- प्राचीन ज्ञान परंपरा को आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप वैज्ञानिक रीति एवं तकनीक का प्रयोग करते हुए नवीनतम रूप में प्रसारित करना,
- संस्कृत में नवाचारों का प्रयोग करना।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय संस्कृत मंच द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से नानाविध विषयों पर संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता रहा है भविष्य में भी किए जाने की योजना है। संस्कृत की ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान, विकास एवं विस्तार तथा उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय संस्कृत मंच के प्रांतीय समूह का गठन भी किया जा चुका है। इसके साथ ही साथ मंच दर्जनों से अधिक देशों जैसे कि- अमेरिका, मारीशस, बैंकाक, कम्बोडिया, नेपाल, भूटान, श्री लंका, बांग्लादेश, म्यांमार आदि देशों में भी विस्तार प्राप्त कर लिया है।
इस समय भारत के प्रत्येक प्रांत के विद्वानों के साथ ही साथ राष्ट्रीय संस्कृत मंच आठ से अधिक देशों के विद्वानों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
“संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ”
(ऋग्वेद, सामनस्यसूक्त, 10/191 )
अर्थात् हम सब सदैव एक साथ चले, हम सब सदैव एक साथ बोले, हम सभी का मन एक जैसा हो। इसी शुभ भावना के साथ राष्ट्रीय संस्कृत मंच संस्कृत के विकास की दिशा में निरंतर प्रयासरत है।
डॉ. राजेश कुमार मिश्र,
राष्ट्रीय आयोजन सचिव, राष्ट्रीय संस्कृत मंच।